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अंतराष्ट्रीय लोक-उत्सव में भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मूजी मुख्य अतिथि: 

धनबाद के प्रेम चंद साव का झारखण्ड डेलिगेट के रूप में चयन:

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अंतराष्ट्रीय लोक-उत्सव में धनबाद के प्रेम चंद साव का झारखण्ड डेलिगेट के रूप में चयन, भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू मुख्य अतिथि:
झारखण्ड : भारत के सबसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय लोक सम्मेलन में झारखण्ड से धनबाद के प्रेम चंद साव का चयन हुआ। तेलंगाना राज्य के हैदराबाद शहर में आयोजित इस उत्सव के मुख्य अतिथि भारत के महामहिम राष्ट्रपति श्रीमति द्रोपदी मुर्मू रहीं। इस उत्सव का उद्घाटन भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति श्री एम. वैंकेया नायडू के कर कमलों द्वारा 21 नवंबर में तेलंगाना राज्य के संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री जुपल्ली कृष्णा राव के उपस्थिति में हुआ जबकि कर्टेन रेइजर भारत के कोयला एवं खान मंत्री माननीय श्री जी. किशन रेड्डी द्वारा किया गया। उद्घाटन सत्र में तेलंगाना के माननीय राज्यपाल श्री जीशू देव वर्मा, तेलंगाना के माननीय मुख्यमंत्री श्री रेवांथ रेड्डी के साथ ही आर एस. एस. के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत, प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय समायोजक श्री जे. नन्दकुमार एवं प्रज्ञा भारती के चेयरमेन श्री टी. हनुमान चौधरी रहे।
उत्सव के दूसरे दिन लोक जीवन दृष्टि विषय पर अपने विचार डेलिगेट्स से साझा करने हेतू गुजरात के माननीय राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत, गुजरात विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नीरजा ए. गुप्ता एवं वैज्ञानिक डा. अनिरबन ने अपने व्याख्यान दिए।
इस उत्सव के समापन समारोह में बतौर विशिष्ट अतिथि भारत के वित्त मंत्री श्रीमति निर्मला सीतारमण, भारत के संस्कृति मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत एवं अयोध्या के आचार्य मिथिलेश नंदिनीशरण जी के साथ डा. मोहन भागवत जी रहे।
इस अंतराष्ट्रीय उत्सव में झारखण्ड डेलिगेट प्रेम चंद साव जी ने अपने इंटरव्यू पर बताये कि इस अंतर्राष्ट्रीय उत्सव को संस्कार भारती, अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद, विज्ञान भारती, भारतीय शिक्षण मंडल, अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, इतिहास संकलन समिति के संयुक्त तत्वाधान में भारतीय संस्कृति मंत्रालय के द्वारा किया गया। भारत के इस विशाल अंतराष्ट्रीय उत्सव में हिस्सा लेने हेतू न सिर्फ भारत देश के विद्वान, बुद्धीजीवी वर्ग अपितु कुल तेरह अन्य देशों से भी डेलिगेट्स का चयन हुआ एवं वे भारत के इस लोक भूमि में लोक विचार, लोक व्यवहार एवं लोक व्यवस्था आधारित थिम पर विचार एवं मंथन करने आए। इस मंथन का फोकस क्षेत्र परिवार प्रबोधन, सामाजिक समरसता, स्वदेशी आचरण, नागरिक कर्तव्य एवं पर्यावरण संरक्षण जैसे पंच परिवर्तन पर आधारित था। यह भारत देश सभी स्तरों में व्याप्त विविधतापूर्ण लेकिन अनूठी संस्कृति का जश्न मनाता है। लोक आधारित इस अंतराष्ट्रीय मंथन का उद्देश्य कृत्रिम विभाजन को तोड़ना और इस सभ्यता के विभिन्न लोगों के बीच उनकी विविध विचार-प्रक्रियाओं, परंपराओं और प्रणालियों के साथ पुल बनाना है। लोक जीवन में दृष्टि, लोक विज्ञान, लोक अर्थशास्त्र, लोक की सर्वसमावेशी व्यवस्था, विकास की लोक अवधारणा और प्रक्रिया, समरूप जैसे विषयों पर अंतराष्ट्रीय स्तर पर सबसे प्रबुद्ध मष्तिष्कों के विचारों का मंथन एवं अवलोकन करने का अवसर मिला। पद्म अवार्डी डा विद्या बिंदु सिंह एवं जे. एन. यू. के कुलपति प्रोफेसर डा. शांतिश्री पंडित जी के विचारों पर मंथन करने का शौभाग्य प्राप्त हुआ। साथ ही भारत के सभी राज्यों के सांस्कृतिक कार्यक्रम, भोजन, व्यंजन, नृत्य, संगीत, परंपरा, वाद्य यंत्र, योगा एवं तेरह अन्य देशों के पुजा पद्धति, लोक परंपरा से रू-ब-रू होने का शुअवसर मिला।


श्री साव ने बताया कि इस लोक विचार के मंथन में नेशन फर्स्ट थिंकर एंड प्रेक्टिशनर, रिसर्चर, एकेडेमिशियन,वैज्ञानिक एवं देश- विदेश के वैसे प्रभावशाली व्यक्तित्वों को एक प्लेटफार्म पर आने का मौका दिया गया है जो अपनी भारतीय परंपरा, संस्कृति एवं प्राचीन विज्ञान, औषधि, ज्ञान आदि के संरक्षण हेतू राष्ट्र प्रथम की भावना से इनके संरक्षण हेतू जमीनी स्तर पर कार्य करते हैं। श्री साव ने बताया कि इस विचार -विमर्श एवं मंथन से जो विष निकला वह मालूम चलता है कि ब्रिटिश के आगमन से हमारी भारतीय संस्कृति में इस प्रकार दूषित हुई है जैसे कौवे कोयल के अंडों के साथ अपना अंडा दे देती हैं और कोयल कौवों के अंडों को भी अपना अंडा समझकर सेंकती है और अंडे जब फूटते हैं तो कौवों के चूजे निकलते हैं ठीक उसी प्रकार विदेशी आक्रांताओं ने हमारी संस्कृति एवं लोक जीवन के परंपराओं एवं भारत की महान सनातन परंपरा को दूषित करने का काम किया है जिसे हमारे भारतियों द्वारा अनजाने में पोषित किया जा रहा है। इस प्रकार अगर भारत के लोक जीवन एवं लोक संस्कृति दूषित होना, सांस्कृतिक क्षति का रूप लेगा और इससे राष्ट्र को क्षति होगी। अतः हमें अपने भारत के महान संस्कृति, परंपराओ एवं जीवन मूल्यों को, अपने पारंपरिक ज्ञान को बचाकर रखना है और इसे पुनः एक नयी उर्जा प्रदान करनी है। तेलंगाना राज्य के हैदराबाद शहर में लगातार 21 से 24 नवंबर तक मुझे इन महान व्यक्तित्वों से मिलने का अवसर मिला इससे में अपने आप को धन्य मानता हूं। अपनी संस्कृति को बचाने की मेरी लालसा और अधिक नवोन्मेषी हुई है।

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